Wednesday, April 28, 2010

जीवन सी पतंग . . .

तुम चली गयी कहके, मुझको फिर न आना है,
न ही तू है मेरे काबिल, न मेरा दीवाना है !!

क्या सितम किया मैंने,  कैसे तुमने छोड़ा है ?
इन ग़मों के सागर को, मेरी ओर मोड़ा है !!

मैंने समझा जीवन सी, तुम पतंग की मांझा हो,
तुम ही मेरी लैला हो, तुम ही मेरा राँझा हो !!

तुमको क्या बताऊँ कैसे, खुद को अब संभाला है ?
गम की गोद में सोया, आंसुओं ने पाला है !!

आज कैसे जाना तुमने, ये शहर हमारा है ?
हमारी ये गलियां हैं, ये ही घर हमारा है !!

आज करती प्यार तुम भी, और मेरा प्यार जाना है,
जब मेरे है पास सबकुछ, पीछे ये जमाना है !!

- प्रसून दीक्षित 'अंकुर'

Sunday, April 25, 2010

मेरी मोहब्बत . . .


मेरी मोहब्बत को तुमने, हकीकत होने न दिया !
इस तरह सताकर तुमने, हंसने क्या रोने न दिया !!

चैन गरीबों की किस्मत में, लिखा कहाँ है जान-ए-मन ?
भूख ने कभी तो कभी, गम ने भी तेरे सोने न दिया !!

Wednesday, April 21, 2010

फाइव स्टार का आर्डर . . .


न जाने क्यों सभी ने, इक यही सवाल रखा था ?
क्यों मैंने जिंदगी को, मौत का दलाल रखा था ?

कोई रामू के ठेले पर अब, चाट खाने नहीं जाता,
मैंने देखा था इक दिन. पंछी कोई हलाल रखा था !

मुझे तो गाँव की आब-ओ-हवा ही रास आती है,
फाइव स्टार के आर्डर में, चावल-दाल रखा था !

कॉलेज की कैन्टीन की वो, आखिरी बेन्च नहीं भूली जाती,
जिस पर मेरे नाम का तुमने, इक रुमाल रखा था !

मुहल्ले की चमेली, घर से जब बन-ठन के चलती है,
लड़के छेड़कर कहते हैं, कहाँ ये जमाल रखा था ?

कभी मेरे घरों की, तुम जो दीवारों को पढोगे,
कहोगे, वाह मियां ! क्या शेर यहाँ कमाल रखा था !

कोई पूछे तो रह-रह के, अपना नाम बता तो देता हूँ 'प्रसून',
मगर माँ ने तो मेरी, नाम मेरा 'लाल' रखा था !
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