तुम चली गयी कहके, मुझको फिर न आना है,
न ही तू है मेरे काबिल, न मेरा दीवाना है !!
क्या सितम किया मैंने, कैसे तुमने छोड़ा है ?
इन ग़मों के सागर को, मेरी ओर मोड़ा है !!
मैंने समझा जीवन सी, तुम पतंग की मांझा हो,
तुम ही मेरी लैला हो, तुम ही मेरा राँझा हो !!
तुमको क्या बताऊँ कैसे, खुद को अब संभाला है ?
गम की गोद में सोया, आंसुओं ने पाला है !!
आज कैसे जाना तुमने, ये शहर हमारा है ?
हमारी ये गलियां हैं, ये ही घर हमारा है !!
आज करती प्यार तुम भी, और मेरा प्यार जाना है,
जब मेरे है पास सबकुछ, पीछे ये जमाना है !!
न ही तू है मेरे काबिल, न मेरा दीवाना है !!
क्या सितम किया मैंने, कैसे तुमने छोड़ा है ?
इन ग़मों के सागर को, मेरी ओर मोड़ा है !!
मैंने समझा जीवन सी, तुम पतंग की मांझा हो,
तुम ही मेरी लैला हो, तुम ही मेरा राँझा हो !!
तुमको क्या बताऊँ कैसे, खुद को अब संभाला है ?
गम की गोद में सोया, आंसुओं ने पाला है !!
आज कैसे जाना तुमने, ये शहर हमारा है ?
हमारी ये गलियां हैं, ये ही घर हमारा है !!
आज करती प्यार तुम भी, और मेरा प्यार जाना है,
जब मेरे है पास सबकुछ, पीछे ये जमाना है !!
- प्रसून दीक्षित 'अंकुर'