है ग़ज़लों की वो हस्ती अपनी, जो फटते शब्द सिया देती हैं,
है जिगरों में वो मस्ती अपनी, जो मय को नशीला बना देती है !
है जिगरों में वो मस्ती अपनी, जो मय को नशीला बना देती है !
लाख लगाओ चन्दन लेपन, तुम निखरोगी जब हम निहारेंगे,
है नज़रों का वो जादू अपनी, जो सूखे वृक्ष जिया देती हैं !!
एक अच्छी रचना ...शानदार... पहली बार आया आपके ब्लॉग पर ख़ुशी हुई ..बस सफ़र जारी रखे ...रुके नहीं .....हमारी सुभ कामनाये आके साथ है ..अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारे
ReplyDeletehttp://athaah.blogspot.com/
प्रसून बेटा
ReplyDeleteआशीर्वाद
आपकी पंक्तियाँ भावपूर्ण है
गुड्डो दादी
चिकागो अमेरिका से
बहुत सुंदर भाई
ReplyDeleteWah wah!
ReplyDeleteअच्छा लगा
ReplyDeleteये लाईने वाकी अच्छी लगी
है नज़रों का वो जादू अपनी, जो सूखे वृक्ष जिया देती हैं !
waah, bahut khoob likha hai
ReplyDeleteprasoon bahut acche rachna h.
ReplyDeleteतुम निखरोगी जब हम निहारेंगे,... pure muktak ki jaan hai.. badhiya likhte hain
ReplyDeletebahut khoob likha hai ..........badhai sweekaaren|
ReplyDeleteHmm bahut khub ankur .......
ReplyDeleteलाख लगाओ चन्दन लेपन, तुम निखरोगी जब हम निहारेंगे,
ReplyDeleteहै नज़रों का वो जादू अपनी, जो सूखे वृक्ष जिया देती हैं
prasun tumhari likhi sher ki ye panktiyan sachmuch pure lekhan me nayi jaan daal di hai .
bahut pasand aaya तुम निखरोगी जब हम निहारेंगे
bless u tumhari didi
प्रशंसनीय ।
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