Wednesday, February 3, 2010

प्यार की सौदागरी . . .




जिंदगी ये सोंचकर जीना, कि वो तेरी हबीब नहीं होगी ;
बस चार दिन बाद मौत से, बचने की
तरकीब नहीं होगी !!


अब भी घर लौटने की बात सुनकर, बच्चे दर पे आ जाते हैं ;
उन्हें खबर नहीं कि अब्बा के हाथ में, कशीब नहीं होगी !!


तुम उनकी याद को
अपने, सीने से लगाकर रखो हमेशा ;
कभी तुम न होगे पास, तो कभी वो करीब नहीं होगी !!


तुम्हारी हद की आखिरी मंजिल हो जहाँ तक, बोली बढ़ा लेना ;

माँ प्यार की सौदागरी में, किसी से भी गरीब नहीं होगी !!


हर एक आशिक से सुना है, उनकी रंगीन महफ़िल का हाल ;

तुम्हें पता नहीं कि उमराव में, अब वो तहजीब नहीं होगी !!


तमाम उम्र उनकी जुबान के, अल्फाज़ नहीं भुला पाया 'प्रसून' ;

कि तुझे अब मैं क्या ? मेरी लाश भी नसीब नहीं होगी !!


: - प्रसून दीक्षित 'अंकुर'
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