Monday, January 25, 2010

क्या यही चिड़िया सोने वाली है ?




मेरी आँखों में केसरिया मेरी बातों में हरियाली है !
वही ख़ाक-ए-वतन खुशबू, वही गेहूं की बाली है !!



कोई सुर्खी लिए बैठा है, कहीं पे शांत सफेदी है !
कभी आओगे तो पूछोगे क्या यही चिड़िया सोने वाली है ?



नामुमकिन शब्द ही है एक बस न मानो तो सुन लो !
यही धरती भगत की और साबरमती संत वाली है !!



जमी से फलक तक हरसू नजर आ रहा तिरंगा मेरा !
है हिन्दोस्ताँ गुलिस्ताँ जैसे, तिरंगा इसका माली है !!



चलो हम भी करें कुछ देश की खातिर मेरे यारों !
हमारी रगों में भी तो एक चिंगारी सोलह-साली है !!



न बंद कमरों में रह-रह के वन्दे मातरम कहो !
बीती रात काली, सुबह कुछ नया करने वाली है !!

Saturday, January 23, 2010

कितनी मासूमियत से . . .



तेरा पल्लू जो इक बार मेरे, जनाजे से रगड़ गया होता !
खुदा भी मेरे लिए लिखी, तकदीर से झगड़ गया होता !!


मिल जाता मेरी रूह को, चैन-ओ-करार ऐ दुनियावालों !
जो कल रात उस बुढ़िया को देख, तेरा बदन अकड़ गया होता !!



कितनी मासूमियत से, तूने निहारा था पहली बार मुझे !
चमक जो पड़ती खंजर की आँखों में, तो पकड़ गया होता !!



मैं अपनी जिंदगी के, ये हर्फ़ लिखूं तो कहाँ लिखूं ?
कागज़ पे लिखता, तो एक दिन कूड़े में सड़ गया होता !!



तुम आ गए हो भटकते-भटकते, ये कहाँ 'प्रसून' ?
हमसफ़र जो कोई साथ होता, तो तू इतना न बिगड़ गया होता !!

Saturday, January 16, 2010

आँखें नम क्यों हैं ?


अभी तो कुछ पाया भी नहीं था,
फिर कुछ खोने का गम क्यों है ?


अभी तो कुछ मिला भी नहीं था,
फिर बिछड़ने का गम क्यों है ?


अभी तो कुछ देखा भी नहीं था,
फिर डर जाने का गम क्यों है ?


अभी तो कुछ याद भी न था,
फिर कुछ भूलने का गम क्यों है ?


अभी तो मंजिल तक पहुंचे भी नहीं थे,
फिर वापस तन्हा लौटने का गम क्यों है ?


अभी तो खेल शुरू भी नहीं हुआ था,
फिर अभी से हारने का गम क्यों है ?


अभी तो प्यार पनप भी नहीं पाया था,
फिर नफरतें बढ़ने का गम क्यों है ?


अभी तो जिंदगी मिली ही नहीं थी,
फिर मर जाने का गम क्यों है ?


अभी तो आरंभन ही नहीं हुआ था,
फिर विसर्जन का गम क्यों है ?


अभी तो सिर्फ ये सपना ही देखा था,
फिर ये आँखें नम क्यों हैं ?

Friday, January 15, 2010

खुदा भी . . .




तेरी चाहत में हमने पा ली ये कैसी नयी उलझन ?


कि तेरे प्यार में ही खो गया मेरा कहीं तन-मन !


खुदा भी तेरी हर फ़रियाद जल्दी सुन गया कैसे ?

कि भर झोली तेरी खुशियों से मुझको दे गया तड़पन !!

Tuesday, January 12, 2010

मुझे मालूम है . . .



आज तुमसे मेरे जीवन की, अंतिम बात अब होगी !

न अब काटूँगा दिन तन्हा, न ही ये रात अब होगी !!



मुझे मालूम है, अपना बनाया है कोई तुमने ;
रहते हैं दिल में वो, क्या मेरी औकात अब होगी ?

Monday, January 11, 2010

क्यों मुझको छोड़ न पाए . . .




अगर चाहत ही थी तुमको, क्यों मुझको मोड़ न पाए ?

अपनी सांसों की डोरी से, क्यों मुझको जोड़ न पाए ?

इसे इक सात फेरों का बंधन, कह दिया कैसे ?

अगर तुम उनके हो गए थे, क्यों मुझको छोड़ न पाए ?

Sunday, January 10, 2010

हमारे प्यार के किस्से . . .



मोहब्बत में तुम्हारी हम, हद से आगे बढ़ गए !

हमारे प्यार के किस्से, सबकी नज़रों में चढ़ गए !!


हमारे दर्द को देख, रो दिए तब दुनियावाले भी ?

जब हम तुम्हारे साथ, कुछ तस्वीरों में मढ़ गए !!
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