Monday, May 3, 2010

नज़रों का जादू . . .



है ग़ज़लों की वो हस्ती अपनी, जो फटते शब्द सिया देती हैं,
है जिगरों में वो मस्ती अपनी, जो मय को नशीला बना देती है !

लाख लगाओ चन्दन लेपन, तुम निखरोगी जब हम निहारेंगे,
है नज़रों का वो जादू अपनी, जो सूखे वृक्ष जिया देती हैं !!

12 comments:

  1. एक अच्छी रचना ...शानदार... पहली बार आया आपके ब्लॉग पर ख़ुशी हुई ..बस सफ़र जारी रखे ...रुके नहीं .....हमारी सुभ कामनाये आके साथ है ..अच्छी प्रस्तुति के लिए बधाई स्वीकारे

    http://athaah.blogspot.com/

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  2. प्रसून बेटा
    आशीर्वाद
    आपकी पंक्तियाँ भावपूर्ण है
    गुड्डो दादी
    चिकागो अमेरिका से

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  3. अच्छा लगा
    ये लाईने वाकी अच्छी लगी
    है नज़रों का वो जादू अपनी, जो सूखे वृक्ष जिया देती हैं !

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  4. prasoon bahut acche rachna h.

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  5. तुम निखरोगी जब हम निहारेंगे,... pure muktak ki jaan hai.. badhiya likhte hain

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  6. लाख लगाओ चन्दन लेपन, तुम निखरोगी जब हम निहारेंगे,
    है नज़रों का वो जादू अपनी, जो सूखे वृक्ष जिया देती हैं
    prasun tumhari likhi sher ki ye panktiyan sachmuch pure lekhan me nayi jaan daal di hai .
    bahut pasand aaya तुम निखरोगी जब हम निहारेंगे
    bless u tumhari didi

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