न जाने क्यों सभी ने, इक यही सवाल रखा था ?
क्यों मैंने जिंदगी को, मौत का दलाल रखा था ?
कोई रामू के ठेले पर अब, चाट खाने नहीं जाता,
मैंने देखा था इक दिन. पंछी कोई हलाल रखा था !
मुझे तो गाँव की आब-ओ-हवा ही रास आती है,
फाइव स्टार के आर्डर में, चावल-दाल रखा था !
कॉलेज की कैन्टीन की वो, आखिरी बेन्च नहीं भूली जाती,
जिस पर मेरे नाम का तुमने, इक रुमाल रखा था !
मुहल्ले की चमेली, घर से जब बन-ठन के चलती है,
लड़के छेड़कर कहते हैं, कहाँ ये जमाल रखा था ?
कभी मेरे घरों की, तुम जो दीवारों को पढोगे,
कहोगे, वाह मियां ! क्या शेर यहाँ कमाल रखा था !
कोई पूछे तो रह-रह के, अपना नाम बता तो देता हूँ 'प्रसून',
मगर माँ ने तो मेरी, नाम मेरा 'लाल' रखा था !
आपने जो आवाज़ दी है दूर से , अच्छा लगा . सार्थक शब्दों का यह सफ़र जारी रहे . शुभ कामना .--- राजीव चतुर्वेदी
ReplyDeleteकोई पूछे तो रह-रह के, अपना नाम बता तो देता हूँ 'प्रसून',
ReplyDeleteमगर माँ ने तो मेरी, नाम मेरा 'लाल' रखा था !
वाह बहुत ही सुंदर गजल कही आप ने धन्यवाद
EK KHAAS ANDAJ MEIN LIKHTA HAI WO GAZAL
ReplyDeleteKYONKI KISI NE HANSKE PUKARA THA USE GAZAL
बहुत खूब --! आप का लिखने का अलग ढंग बेहद अच्छा लगा प्रसून जी !
ReplyDeletekahte hain ki prasoon jee apke hain andaje -bayan aur. wakai lajwab hai apki shayree.man ko rahat si pahuncha gayee.
ReplyDeleteकॉलेज की कैन्टीन की वो, आखिरी बेन्च नहीं भूली जाती,
ReplyDeleteजिस पर मेरे नाम का तुमने, इक रुमाल रखा था !
कोई पूछे तो रह-रह के, अपना नाम बता तो देता हूँ 'प्रसून',
मगर माँ ने तो मेरी, नाम मेरा 'लाल' रखा था !
bahut achchha laga sahab.
aise hi likhte raherin.
good work prasoon .
ReplyDeletebahut khub kaha mitr...........:)
ReplyDeletePahli baar apke blogpe aayi hun...kya kamal ka likhte hain aap!
ReplyDeleteTumhari bhav bahut achhe hain Ankur aur kuch rachnayen bahut achhi bani hain.is umra ke liye ye bahut jyada hai.shubhkamnayen tumhari lekhni aur samarth aur samraddh ho.
ReplyDeleteTumhari bhav bahut achhe hain Ankur aur kuch rachnayen bahut achhi bani hain.is umra ke liye ye bahut jyada hai.shubhkamnayen tumhari lekhni aur samarth aur samraddh ho.
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