
लिखने को तो हम भी तेरे,
चेहरे को कँवल लिख सकते थे !
चेहरे को कँवल लिख सकते थे !
नफरत की नीव के उन खंडहरों को,
हम भी तो महल लिख सकते थे !!
हम भी तो महल लिख सकते थे !!
है बात नहीं लिखने की केवल,
जो सजाएं दी वो उकेरी हैं;
जो सजाएं दी वो उकेरी हैं;
तुम प्यार अगर करती हमसे,
हम उपहारों की ग़ज़ल लिख सकते थे !!
हम उपहारों की ग़ज़ल लिख सकते थे !!
आपका - प्रसून दीक्षित 'अंकुर'
नफरत की नीव के उन खंडहरों को, हम भी तो महल लिख सकते थे !!
ReplyDeletevery nice poem, great blog with extremely sensitive gazals and poems... even better pictures... keep it up... I have became fan of yours... itni choti umr mai itni sateek soch...
Aapka bahut-bahut dhanyawaad ! aapka isi prakaar ka aashirwaad mujhe prerit karta rahega !
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