
अँधेरे सब उसकी चाहत के, मुझको रवि बना बैठे !
अश्रुओं से भरे नयनों की, मुझको छवि बना बैठे !!
खुदा भी चाहता तो, कर न सकता था बयाँ यारों ,
तभी तो गम उसकी नफरत के, मुझको 'कवि' बना बैठे !!
आपका - प्रसून दीक्षित 'अंकुर'
है फकत ये जिंदगी बस चार ही दिन की जनाब, लाख कोशिश करो न भूलने की ये सामान सारा, पर सब यहीं पर छोड़ के एक दिन तो जाना ही है !! - प्रसून 'अंकुर'
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