
तुमने तो केवल हमारी पलकों पे,
कुछ अधूरे ख्वाब ही सजवा दिए,
एक बार जो इस नक़्शे को,
इमारत में बदल दिया होता,
तो हम बस एक तुम्हारे होकर,
ही न रह जाते तो कहतीं !!

तुमने तो केवल किनारों पर ही पड़ी,
सीपियों से मोती चुन लिए,
एक बार जो इस समंदर में,
झाँककर देखा होता,
तो तुम्हारी आँखें इसमें पड़े कोहिनूरों से,
झिलमिला न उठती तो कहतीं !!

तुमने तो कुछ गलतफ़हमियों में,
हमारी फूलती-फलती बगिया उजाड़ दी,
एक बार जो हमारे दिल की,
पुकार भी सुनी होती,
तो हम तुम्हारी राहों में अनगिनत,
'प्रसून' न बिछा देते तो कहतीं !!
एक बार जो हमारे दिल की पुकार भी सुनी होती,
ReplyDeleteतो हम तुम्हारी राहों में अनगिनत 'प्रसून' न बिछा देते ye lines
sachme chhune wali hai..........
har rachna me kuchh ankahe sawalon ke jawab nazar aate hain...........
prasun ji bahut hi gahraai hai (dard) har nazm me.....
बहुत उमदा ख़यालात हैं जनाब
ReplyDeleteमेरी तरफ़ से इस ख़ूबसूरत सौग़ात के लिये
मुबारकबाद
सुंदर अभिव्यक्ति!
ReplyDeleteBahut khub likha hai aapne....
ReplyDeleteचित्रों के साथ प्रविष्टि सुन्दर लग रही है ।
ReplyDeleteपर चित्रों के साथ इतना मोह क्यों ? आपके चित्र की विराटता के आगे ब्लॉग सहम जा रहा है । उसे छोटा कर सकें तो ... वैसे साइडबार में भी लगा सकते हैं । अंकुर हैं न ! तनिक छोटा दिखिये (स्नेह से कह रहा हूँ ) ।
आता रहूँगा । आभार ।
हमे भी चित्र बेहद खुबसूरत लगे खास कर वो सीपियों से मोती वाला ....
ReplyDeleteregards